Tuesday, May 24, 2016

किश्तें

और कितनी बार लिखा है
किस्मत में दिल का टूटना
सब जोड़ कर एक ही बार
में कर दे हिसाब पूरा
के किश्तों में दिल का टूटना
बड़ा महंगा पड़ता है 

Wednesday, December 11, 2013

पोलिटिकल एक्शन

दिन कैसे गुज़र जाता है -
फेसबुक पर बदलाव की हवाएँ चलती हैं
फेमिनिज्म की, आम आदमी की
मेरा मन उनसे छुआ
हिंदी फ़िल्म की नायिका की साड़ी सा
फड़फड़ाता, मचलता
चील जैसे पंख निकाल
लम्बी उड़ान भरने को ,
कुछ करने को।

लैपटॉप पे फटाफट नया नोट खोल लेती हूँ
डेस्कटॉप पर ही - फोल्डर बनाने का सब्र किसे ?
चार लाइनें , ज़बरदस्त मैनिफेस्टो की !
फिर याद आता है कि बालों में तेल लगाना है
और फ्लिप-कार्ट पे खरीदी किताबें धूल खा रहीं हैं
लिंक्ड इन पे तो सदियों से किसी से मतलबी बातें नहीं की
ऐसे कैसे बिज़नस करोगी ?
सच ही कहती थी माँ
ये बिज़नस-विज़नेस हमारे स्कोलरली परिवार के बस का नहीं

स्कोलरली से याद आया, किताबें! जो धूल खा रहीं थीं
चलो यहीं से शुरू करती हूँ
पहला चैप्टर - टेलरिस्म पर
"टेलर के मशीनीकरण ने
संस्थानों के साथ इंसानों को भी मशीन बना दिया"
हाय राम! क्या होगा समाज का!
समाज से याद आया - फेसबुक! और अधूरा मैनिफेस्टो!

उफ़! एक दिन में अड़तालीस घंटे क्यूँ नहीं होते!
समाज भी बदलना है, धंधा भी चलाना है,
किताबें पढ़ना तो हमारी पारिवारिक ज़िम्मेदारी है।
फड़फड़ाहट मन से उठकर दिमाग पे हावी होती,
चील की उड़ान बन जाती कौवे की काँय - काँय !
दिमाग शांत करने का एक ही उपाय है - चाय

चाय कि चुस्कियाँ परत-परत
दिमाग के जालों को साफ़ कर देती हैं
इस देश के कई आंदोलनों , खिलाफ़तों ,
आविष्कारों, नीतियों
में  वाघ बकरी और लिप्टन का योगदान
अनदेखा पर कड़क है (कड़वा नहीं)

कुछ परतें मेरे दिमाग से हटतीं हैं  ,
और सहसा याद आती है किसी ग्यानी व्यक्ति,
जिनका नाम याद रखना मैंने ज़रूरी नहीं समझा,
की बात, "आल राइटिंग इस पोलिटिकल"
तो बस! लिख देती हूँ मैं  भी
कविता सा कुछ

ये दबाया "पोस्ट", ये हुआ पोलिटिकल एक्शन !
ज़िम्मा ख़त्म! पैसा हज़म!
अब जाती हूँ बालों में तेल लगाने 

Saturday, March 2, 2013

उसके गीत

उसके गीत प्याज़ जैसे 
नकली आंसुओं की आड़ में 
कुछ असली बहा ले गए
वाहवाही दर्द भरी आवाज़ की 
छिपा गयी ग़म, इसी बहाने 
सुनने वालों के ज़हन का

Sunday, January 22, 2012

साकी

क्या ढूंढ रहा है बन्दे ?
मैख़ाना तो खाली है
था कभी कोई जश्न यहाँ
या सारा आलम जाली है ?

टुक-टुकाती आँखें तेरी
खोज रहीं इतिहास यहाँ
सन्नाटा ही सन्नाटा पर
करता अट्टहास यहाँ

टूटी बोतलों के शीशे
दिला रहे विश्वास तुझे
साकी रहा कभी तो होगा 
ताकि सबकी प्यास बुझे 

Saturday, August 6, 2011

दिल तो बच्चा है जी

दिल को कह दो बच्चा जी
ये तरीका अच्छा जी

कर लो भर के नादानी 
मन भर मन की मनमानी
छोडो ये ज़िम्मा विम्मा
ये तो साला निकम्मा 

ये अच्छा बहाना जी
नहीं किसीको मनाना जी


आज इधर कल उधर परिंदा
दोस्त कभी तो कभी दरिंदा
अलट पलट सब सही गलत 
राजा जो कह दे वो सत

इस नगरी का राजा जी
दिल है पी के गाँजा जी 

Wednesday, June 29, 2011

बुकमार्क



तुम तो कह कर चले गए
कथन तुम्हारा रह गया
किताब में भूले हुए
गुलाब की तरह.
अब जितनी बार किताब खोलूँ
खुले एक ही पन्ना
उड़े एक ही ख़ुशबू

Tuesday, June 28, 2011

शीर्षक

लिखती हूँ लेकिन
मैं कवि नहीं
गाती हूँ अकसर
पर गायक नहीं
खाली टंगा है बोर्ड
ऑफिस के बाहर
बिल्लों का बोझ
उठा पाती नहीं